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तीर-ए-नज़र ने आप की घाएल किया मुझे - अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन कविता - Darsaal

तीर-ए-नज़र ने आप की घाएल किया मुझे

तीर-ए-नज़र ने आप की घाएल किया मुझे

फिर शौक़-ए-इंतिज़ार ने पागल किया मुझे

ऐसी चली हवा-ए-गुलिस्ताँ मिरी तरफ़

छू कर बू-ए-गुलाब ने संदल किया मुझे

बेटों ने मेरे नाम की दस्तार पहन ली

और बेटियों ने सूरत-ए-आँचल किया मुझे

बढ़ने लगी है दिल की तमन्ना-ए-आशिक़ी

यूँ आ के तेरी याद ने बेकल किया मुझे

होश-ओ-हवास खोने लगा हूँ फ़िराक़ में

तन्हाइयों ने ऐसा मुक़फ़्फ़ल किया मुझे

पहले तो आज़माया अता-ए-बहिश्त से

फिर भेज कर जहान में अफ़ज़ल किया मुझे

हर शख़्स मो'तरिफ़ कि मुहिब्ब-ए-वतन हूँ मैं

फिर अदलिया ने क्यूँ सर-ए-मक़्तल किया मुझे

इब्न-ए-चमन है तेरी वफ़ाओं पे जाँ-निसार

अपना बना के तू ने मुकम्मल किया मुझे

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