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हम ने देखा है इतने खंडर ख़्वाब में - अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन कविता - Darsaal

हम ने देखा है इतने खंडर ख़्वाब में

हम ने देखा है इतने खंडर ख़्वाब में

अब तो लगता नहीं हम को डर ख़्वाब में

अपनी बरसों से है इक वही आरज़ू

रोज़ आ जाए है जो नज़र ख़्वाब में

वक़्त आने पे सब को ग़शी आ गई

जो बताते थे ख़ुद को निडर ख़्वाब में

ज़ुल्म की आँधियाँ बढ़ के तूफ़ाँ हुईं

मस्त दुनिया है पर रात भर ख़्वाब में

इश्क़ की ये मसाफ़त भी क्या ख़ूब है

चाँद तारे हुए रहगुज़र ख़्वाब में

उन से होता है हर रात अहद-ए-वफ़ा

और निभाते हैं हम बेशतर ख़्वाब में

रोज़ ओ शब खो गए हैं न जाने कहाँ

अब तो होती है शाम ओ सहर ख़्वाब में

जो बहुत मो'तबर आ रहे हैं नज़र

उन के होते हैं कार-ए-दिगर ख़्वाब में

ज़िंदगी की हक़ीक़त अजब हो गई

आज कल हो रही है बसर ख़्वाब में

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