वो जिस में लौट के आती थी एक शहज़ादी
अभी तलक नहीं भूली वो दास्ताँ मुझ को
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अगर ख़ुशी में तुझे गुनगुनाते लगते हैं
रंज जो दीदा-ए-नमनाक में देखा गया है
अजब तरह के कमाल करने भी आ गए हैं
हिज्र इंसाँ के ख़द-ओ-ख़ाल बदल देता है
अक्स को फूल बनाने में गुज़र जाती है
ये लोग ढूँड रहे हैं यहाँ वहाँ मुझ को
ताएरों की उड़ान में हम हैं
शाम होती है तो लगता है कोई रूठ गया
दिल किसी ख़्वाहिश का उकसाया हुआ
वो फूल हो सितारा हो शबनम हो झील हो
शाम ढलने से फ़क़त शाम नहीं ढलती है
हम आइने में तिरा अक्स देखने के लिए