शाम ढलने से फ़क़त शाम नहीं ढलती है
उम्र ढल जाती है जल्दी पलट आना मिरे दोस्त
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3292) Peoples Rate This
वो शख़्स जिस की ख़ुशी का बाइस थीं मेरी बातें
शाम होती है तो लगता है कोई रूठ गया
जा तुझे तेरे हवाले कर दिया
अक्स को फूल बनाने में गुज़र जाती है
वो फूल हो सितारा हो शबनम हो झील हो
हम फ़क़त तेरी गुफ़्तुगू में नहीं
दिल किसी ख़्वाहिश का उकसाया हुआ
अगर ख़ुशी में तुझे गुनगुनाते लगते हैं
याद रक्खेगा मिरा कौन फ़साना मिरे दोस्त
रंज जो दीदा-ए-नमनाक में देखा गया है
हिज्र इंसाँ के ख़द-ओ-ख़ाल बदल देता है
हम आइने में तिरा अक्स देखने के लिए