हम फ़क़त तेरी गुफ़्तुगू में नहीं
हर सुख़न हर ज़बान में हम हैं
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शाम ढलने से फ़क़त शाम नहीं ढलती है
याद रक्खेगा मिरा कौन फ़साना मिरे दोस्त
अगर ख़ुशी में तुझे गुनगुनाते लगते हैं
ये लोग ढूँड रहे हैं यहाँ वहाँ मुझ को
शाम होती है तो लगता है कोई रूठ गया
ताएरों की उड़ान में हम हैं
दिल किसी ख़्वाहिश का उकसाया हुआ
मैं सीखता रहा इक उम्र हाव-हू करना
वो जिस में लौट के आती थी एक शहज़ादी
अजब तरह के कमाल करने भी आ गए हैं
रंज जो दीदा-ए-नमनाक में देखा गया है
वो फूल हो सितारा हो शबनम हो झील हो