हम आइने में तिरा अक्स देखने के लिए
कई चराग़ नदी में बहाने लगते हैं
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वो शख़्स जिस की ख़ुशी का बाइस थीं मेरी बातें
अगर ख़ुशी में तुझे गुनगुनाते लगते हैं
वो जिस में लौट के आती थी एक शहज़ादी
ऐ जुनूँ उस की कहानी भी सुनाऊँगा तुझे
हिज्र इंसाँ के ख़द-ओ-ख़ाल बदल देता है
याद रक्खेगा मिरा कौन फ़साना मिरे दोस्त
दिल किसी ख़्वाहिश का उकसाया हुआ
हम फ़क़त तेरी गुफ़्तुगू में नहीं
ये लोग ढूँड रहे हैं यहाँ वहाँ मुझ को
शाम ढलने से फ़क़त शाम नहीं ढलती है
मैं सीखता रहा इक उम्र हाव-हू करना