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ये लोग ढूँड रहे हैं यहाँ वहाँ मुझ को - अशफ़ाक़ नासिर कविता - Darsaal

ये लोग ढूँड रहे हैं यहाँ वहाँ मुझ को

ये लोग ढूँड रहे हैं यहाँ वहाँ मुझ को

तलाश करते नहीं अपने दरमियाँ मुझ को

मैं अगले पिछले ज़मानों से हो के आया हूँ

कहीं नज़र नहीं आए हैं रफ़्तगाँ मुझ को

वो जिस में लौट के आती थी एक शहज़ादी

अभी तलक नहीं भूली वो दास्ताँ मुझ को

ये किस ने कर दिया सैक़ल ज़मीं का आईना

तह-ए-ज़मीं नज़र आता है आसमाँ मुझ को

अजीब शख़्स है जिस ने कहीं नहीं जाना

ये कह के देखता जाता है कारवाँ मुझ को

मुझे ख़बर है कहानी का अंत आ गया है

मुझे ख़बर है कि होना है राएगाँ मुझ को

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