उस आँख न उस दिल से निकाले हुए हम हैं
उस आँख न उस दिल से निकाले हुए हम हैं
यूँ है कि ज़रा ख़ुद को सँभाले हुए हम हैं
इस बज़्म में इक जश्न-ए-चराग़ाँ है उन्ही से
कुछ ख़्वाब जो पलकों पे उजाले हुए हम हैं
कुछ और चमकता है ये दिल जैसा सितारा
किन दर्द की लहरों के हवाले हुए हम हैं
दिल है कि कोई फ़ैसला कर ही नहीं पाता
इक मौज-ए-तज़ब्ज़ुब के उछाले हुए हम हैं
वो हो न सका अपना तो हम हो गए उस के
उस शख़्स की मर्ज़ी ही में ढाले हुए हम हैं
इस ममलिकत-ए-लफ़्ज़-ओ-बयाँ में भी तो 'अश्फ़ाक़'
इक राह अलग अपनी निकाले हुए हम हैं
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