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तिरे पहलू में तिरे दिल के क़रीं रहना है - अशफ़ाक़ हुसैन कविता - Darsaal

तिरे पहलू में तिरे दिल के क़रीं रहना है

तिरे पहलू में तिरे दिल के क़रीं रहना है

मेरी दुनिया है यही मुझ को यहीं रहना है

काम जो उम्र-ए-रवाँ का है उसे करने दे

मेरी आँखों में सदा तुझ को हसीं रहना है

दिल की जागीर में मेरा भी कोई हिस्सा रख

मैं भी तेरा हूँ मुझे भी तो कहीं रहना है

आसमाँ से कोई उतरा न सहीफ़ा न सही

तू मिरा दीं है मुझे साहिब-ए-दीं रहना है

जैसे सब देख रहे हैं मुझे इस तरह न देख

मुझ को आँखों में नहीं दिल में मकीं रहना है

फूल महकेंगे यूँही चाँद यूँही चमकेगा

तेरे होते हुए मंज़र को हसीं रहना है

मैं तिरी सल्तनत-ए-हुस्न का बाशिंदा हूँ

अब मुझे और कहीं जा के नहीं रहना है

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