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दिल अजनबी देस में लगा है - अशफ़ाक़ हुसैन कविता - Darsaal

दिल अजनबी देस में लगा है

दिल अजनबी देस में लगा है

आँधी से दिए का राब्ता है

टूटे हुए लोग हैं सलामत

ये नक़्ल-ए-मकानी का मोजज़ा है

कोई भी नहीं यहाँ पे आज़ाद

धोका ये फ़क़त निगाह का है

मैं जिस में नहीं हूँ और वहीं हूँ

वो घर मिरी राह देखता है

बढ़ जाएँगी और उलझनें कुछ

लौट आने से फ़ाएदा भी क्या है

जब ढूँड लिया उसे तो जाना

मेरा ही वजूद खो चुका है

'अश्फ़ाक़' हर एक लम्हा-ए-ज़ीस्त

जीने का ख़िराज माँगता है

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