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एक नया वाक़िआ इश्क़ में क्या हो गया - अशफ़ाक़ आमिर कविता - Darsaal

एक नया वाक़िआ इश्क़ में क्या हो गया

एक नया वाक़िआ इश्क़ में क्या हो गया

दिल में कहीं फिर कोई ज़ख़्म हरा हो गया

बज़्म-ए-तरब भी सजी महफ़िल-ए-ग़म भी सजी

कौन मिला था मुझे कौन जुदा हो गया

अपनी ख़ुशी से मुझे तेरी ख़ुशी थी अज़ीज़

तू भी मगर जाने क्यूँ मुझ से ख़फ़ा हो गया

मैं तो नहीं माँगता इस के सिवा कुछ सिला

तेरी नज़र हो गई मेरा भला हो गया

बढ़ने लगी ख़ामुशी डरने लगी ज़िंदगी

दिल ही मेरा दफ़अतन नग़्मा-सरा हो गया

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