अशअर नजमी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अशअर नजमी
नाम | अशअर नजमी |
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अंग्रेज़ी नाम | Ashar Najmi |
जन्म की तारीख | 1960 |
जन्म स्थान | Mumbai |
ज़हर में डूबी हुई परछाइयों का रक़्स है
वो जिन की हिजरतों के आज भी कुछ दाग़ रौशन हैं
तुम भी थे सरशार मैं भी ग़र्क-ए-बहर-ए-रंग-ओ-बू
तेरे बदन की धूप से महरूम कब हुआ
शायद मिरी निगाह में कोई शिगाफ़ था
सौंपोगे अपने बा'द विरासत में क्या मुझे
सरों के बोझ को शानों पे रखना मोजज़ा भी है
रस्ते फ़रार के सभी मसदूद तो न थे
रफ़्ता रफ़्ता ख़त्म क़िस्सा हो गया होना ही था
ना-तमामी के शरर में रोज़ ओ शब जलते रहे
न जाने कब कोई आ कर मिरी तकमील कर जाए
मैं ने भी परछाइयों के शहर की फिर राह ली
कैनवस पर है ये किस का पैकर-ए-हर्फ़-ओ-सदा
बहुत मोहतात हो कर साँस लेना मो'तबर हो तुम
अंधेरे में तजस्सुस का तक़ाज़ा छोड़ जाना है
यहाँ तो हर घड़ी कोह-ए-निदा की ज़द में रहते हैं
तेरे बदन की धूप से महरूम कब हुआ
सुकूत-ए-शब के हाथों सोंप कर वापस बुलाता है
शायद मिरी निगाह में कोई शिगाफ़ था
रफ़्ता रफ़्ता ख़त्म क़िस्सा हो गया होना ही था
मेरे उस के दरमियाँ ये फ़ासला अपनी जगह है
मसअला ये तो नहीं कि सिन-रसीदा कौन था
इस सफ़र में नीम-जाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं
इंकिशाफ़-ए-ज़ात के आगे धुआँ है और बस
हम तह-ए-दरिया तिलिस्मी बस्तियाँ गिनते रहे
अंधेरे में तजस्सुस का तक़ाज़ा छोड़ जाना है