'अशहर' कहीं क़रीब ही तारीक ग़ार है
जुगनू की रौशनी को वहीं चल के छोड़ दें
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Gulzar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Habib Jalib
Wasi Shah
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(695) Peoples Rate This
तिरा ग़ुरूर झुक के जब मिला मिरे वजूद से
रहगुज़र भी तिरी पहले थी अजनबी
इक शहर ज़िया-बार यहाँ भी है वहाँ भी
अजनबियत थी मगर ख़ामोश इस्तिफ़्सार पर
ज़िंदगी करना वो मुश्किल फ़न है 'अशहर' हाशमी
क्या क़द्र-ए-अना होगी जबीं जान रही है
है कौन जिस से कि वादा ख़ता नहीं होता
शोर कैसा है मिरे दिल के ख़राबे से उठा
मेरी दुनिया में समुंदर का कहीं नाम नहीं
वहीं के पत्थरों से पूछ मेरा हाल-ए-ज़िंदगी
उस से मिलने की तलब में जी लिए कुछ और दिन