शहर तो कब का जल चुका 'असग़र'
उठ रहा है मगर धुआँ अब तक
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सर पे दस्तार जब सलामत है
तलातुम में कभी उतरा था 'असग़र'
कहाँ सर छुपाएँ पता ही नहीं
चैन मुझ को मिला कहाँ अब तक
बात कुछ भी न थी क्यूँ ख़फ़ा हो गया
कहाँ खो गए मेरे ग़म-ख़्वार अब
सारी दुनिया को जीतने वाला
''ख़ुश्क पत्ता है तो हवा से डर''
दिल में 'असग़र' के ख़ुशियों की बरसात थी