इक शख़्स अपने हाथ की तहरीर दे गया

इक शख़्स अपने हाथ की तहरीर दे गया

जैसे मिरा नविश्ता-ए-तक़दीर दे गया

इक दोस्त मेरे क़ल्ब की तालीफ़ के लिए

कुछ ज़हर में बुझाए हुए तीर दे गया

बरसों के बा'द उस से मुलाक़ात जब हुई

बीते दिनों की चंद तसावीर दे गया

घेरे हुए थी मुझ को शब-ए-ग़म की तीरगी

वो मुस्कुरा के सुब्ह की तनवीर दे गया

चुपके से रात आ के मिरे घर के सहन में

इक चाँद मेरे ख़्वाब की ताबीर दे गया

मैं अपने ए'तिमाद का एहसानमंद हूँ

मुझ को ज़माने भर में जो तौक़ीर दे गया

वो कौन था कहाँ का था क्या उस का नाम था

'राही' जो तेरे शे'रों को तासीर दे गया

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