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एक आँच की कमी - असग़र नदीम सय्यद कविता - Darsaal

एक आँच की कमी

सूरज आसमान से गिरा

और लेमूँ बन गया

चाँद आसमान से गिरा

और कपास का फूल बन गया

मैं तारीख़ के मीनार से गिरा

और वाक़िआ क्यूँ न बन सका

पानी दरियाओं से निकला

और जंगल बन गया

लफ़्ज़ किताब से निकला

और आलिम बन गया

मैं उस की निय्यत के अँधेरे से निकला

और आज़ादी क्यूँ न बन सका

हवा बादबान से गिरी

और मल्लाह का गीत बन गई

बोसा होंटों से गिरा

और मोहब्बत का परिंदा बन गया

दिन उक़ाब की चोंच से गिरा

और सूरज-मुखी का बाग़ क्यूँ न बन सका

तीर कमान से निकला

और बादशाह बन गया

शहज़ादा महल से निकला

और जोगी बन गया

ख़याल अपने मदार से निकला

और नज़्म क्यूँ न बन सका

ख़्वाहिश दिल से गिरी

और काला गुलाब बन गई

नुक्ता ध्यान से गिरा

और सूफ़ी बन गया

मैं ज़मीन पर गिरा

और बारिश का क़तरा क्यूँ न बन सका!

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