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दिल का फैलाव - असग़र नदीम सय्यद कविता - Darsaal

दिल का फैलाव

दिल का फैलाव तो ज़मीन का फैलाव है

गंदुम फल शीशम और पानी

फिर लड़की और हवा में

नग़्मा दिल के परिंदों का

इन ज़िंदों का जो ग़ैर-मुनाफ़ा-बख़्श ज़मीन पे रहते हैं

पानी शीशम बच्चा लड़की तेज़ हवा और फल में

ख़्वाब है सुब्ह-ए-सादिक़ का

उन औरतों का जो दूसरों की मर्ज़ी से ब्याही जाती हैं

उन बोसों का

जो गाड़ी की सीटी से डर जाते हैं

शहर में कौन है

जिस ने आँख में दरिया

दिल में समुंदर

देखा और तस्लीम किया है

दिल का फैलाव तो ज़मीन का फैलाव है

जिस में पानी शीशम गंदुम बच्चा

लड़की तेज़ हवा और फल की

रिहाइश-गाहें हैं

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