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ना-गुज़ीर - असग़र मेहदी होश कविता - Darsaal

ना-गुज़ीर

ये चाँदनी ये सितारे ये आबशार ये झील

ये जुगनुओं की चमक और ये तितलियों की उड़ान

ये कोयलें ये पपीहे तरह तरह के ये फूल

घने घने से दरख़्तों के मीठे मीठे फल

हसीन ख़्वाब में बच्चे की जादुई मुस्कान

वफ़ा ख़ुलूस मोहब्बत जिहाद क़ुर्बानी

ये सब क़दीम हैं इन में नया तो कुछ भी नहीं

हमारे अपने मसाइल भी सब पुराने हैं

ये कुश्त-ओ-ख़ून ये ग़ारत-गरी ये बर्बादी

हवा-ओ-हिर्स-ओ-मज़ालिम की दास्तान-ए-तवील

गली गली ये शराब-ओ-शबाब के फ़ित्ने

ज़र-ओ-ज़मीन का अब तक वही क़दीम फ़साद

ये सारी बातें हमेशा से थीं और आज भी हैं

ये बात अब भी नहीं तय हुई कि सच क्या है

अगर यही है मुक़द्दर हमारी दुनिया का

किसी रसूल के आने की क्या ज़रूरत थी

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