मेरा बचपन ही मुझे याद दिलाने आए
मेरा बचपन ही मुझे याद दिलाने आए
फिर हथेली पे कोई नाम लिखाने आए
आ के चुपके से कोई चीख़ पड़े कानों में
गुदगुदाने न सही आए डराने आए
लूट ले आ के मिरी सुब्ह की मीठी नींदें
मैं कहाँ कहता हूँ वो मुझ को जगाने आए
मेरे आँगन में न जुगनू हैं न तितली न गुलाब
कोई आए भी तो अब किस के बहाने आए
देर तक ठहरी रही पलकों पे यादों की बरात
नींद आई तो कई ख़्वाब सुहाने आए
(1120) Peoples Rate This