जो सज़ा चाहो मोहब्बत से दो यारो मुझ को
जो सज़ा चाहो मोहब्बत से दो यारो मुझ को
लेकिन अख़्लाक़ के पत्थर से न मारो मुझ को
आबशारों की तरह मैं नहीं गिरने वाला
धूप की तरह पहाड़ों से उतारो मुझ को
मैं तो हर हाल में डूबूँगा मगर अख़्लाक़न
ये ज़रूरी है कि साहिल से पुकारो मुझ को
अज़्मत-ए-तिश्ना-लबी भूल न जाओ लोगो
फिर किसी दश्त से इक बार गुज़ारो मुझ को
तुम तो डूबे हुए ख़ुर्शीद के पर्वर्दा हो
तुम नहीं जानते ऐ चाँद सितारो मुझ को
(780) Peoples Rate This