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जला जला के दिए पास पास रखते हैं - असग़र मेहदी होश कविता - Darsaal

जला जला के दिए पास पास रखते हैं

जला जला के दिए पास पास रखते हैं

हम अपने आप को अक्सर उदास रखते हैं

गुलों का रंग फलों की मिठास रखते हैं

कुछ आदमी भी शजर का लिबास रखते हैं

उन्हें भी ख़ाली गिलासों का टूटना है पसंद

ज़रूर वो भी कोई ज़ख़्म-ए-यास रखते हैं

जो लोग नेक थे शबनम से हो गए सैराब

वो क्या करें जो समुंदर की प्यास रखते हैं

सुकूत-ए-आब पे कंकर उछाल कर ख़ुश थे

अब आज पानी पे घर की असास रखते हैं

जिन्हों ने अब्र के साए कभी नहीं देखे

वो रेगज़ार भी फूलों की आस रखते हैं

हवस की नाव बदन के भँवर में डूब गई

हम ऐसे और कई इक़्तिबास रखते हैं

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