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आए थे घर में आग लगाने शरीर लोग - असग़र मेहदी होश कविता - Darsaal

आए थे घर में आग लगाने शरीर लोग

आए थे घर में आग लगाने शरीर लोग

और हँस रहे थे दूर खड़े बे-ज़मीर लोग

हिम्मत कहाँ है मुझ में कि सच बोल कर दिखाऊँ

बैठे हुए हैं जोड़े कमानों में तीर लोग

हर आदमी के लब पे है इक दिल-शिकन सवाल

आख़िर कहाँ चले गए वो दिल-पज़ीर लोग

इक रोज़ कह दिया था हक़ीर इंकिसार में

ये बात सच समझ गए सारे हक़ीर लोग

दस्त-ए-तलब दराज़ करें भी तो क्या करें

देखे गए हैं दस्त-निगर दस्त-गीर लोग

जो पूछना है पूछ ले और छोड़ रास्ता

टिकते नहीं किसी भी जगह हम फ़क़ीर लोग

बरपा किया गया था ग़रीबी मिटाओ जश्न

शामिल थे इस में शहर के सारे अमीर लोग

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