न कुछ फ़ना की ख़बर है न है बक़ा मालूम
बस एक बे-ख़बरी है सो वो भी क्या मालूम
Wasi Shah
Gulzar
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क्या मस्तियाँ चमन में हैं जोश-ए-बहार से
यूँ मुस्कुराए जान सी कलियों में पड़ गई
जीने का न कुछ होश न मरने की ख़बर है
इश्क़ है इक कैफ़-ए-पिन्हानी मगर रंजूर है
क़हर है थोड़ी सी भी ग़फ़लत तरीक़-ए-इश्क़ में
'असग़र' से मिले लेकिन 'असग़र' को नहीं देखा
सिर्फ़ इक सोज़ तो मुझ में है मगर साज़ नहीं
ये इश्क़ ने देखा है ये अक़्ल से पिन्हाँ है
जो नक़्श है हस्ती का धोका नज़र आता है
ज़ुल्फ़ थी जो बिखर गई रुख़ था कि जो निखर गया
मता-ए-ज़ीस्त क्या हम ज़ीस्त का हासिल समझते हैं
अल्लाह-रे चश्म-ए-यार की मोजिज़-बयानियाँ