बना लेता है मौज-ए-ख़ून-ए-दिल से इक चमन अपना
बना लेता है मौज-ए-ख़ून-ए-दिल से इक चमन अपना
वो पाबंद-ए-क़फ़स जो फ़ितरतन आज़ाद होता है
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बना लेता है मौज-ए-ख़ून-ए-दिल से इक चमन अपना
वो पाबंद-ए-क़फ़स जो फ़ितरतन आज़ाद होता है
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