ये नंग-ए-आशिक़ी है सूद ओ हासिल देखने वाले
ये नंग-ए-आशिक़ी है सूद ओ हासिल देखने वाले
यहाँ गुमराह कहलाते हैं मंज़िल देखने वाले
ख़त-ए-साग़र में राज़-ए-हक़-ओ-बातिल देखने वाले
अभी कुछ लोग हैं साक़ी की महफ़िल देखने वाले
मज़े आ आ गए हैं इश्वा-हा-हुस्न-ए-रंगीं के
तड़पते हैं अभी तक रक़्स-ए-बिस्मिल देखने वाले
यहाँ तो उम्र गुज़री है इसी मौज ओ तलातुम में
वो कोई और होंगे सैर-ए-हासिल देखने वाले
मिरे नग़्मों से सहबा-ए-कुहन भी हो गई पानी
तअज्जुब कर रहे हैं रंग-ए-महफ़िल देखने वाले
जुनून-ए-इश्क़ में हस्ती आलम पर नज़र कैसी
रुख़-ए-लैला को क्या देखेंगे महमिल देखने वाले
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