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ये क्या कहा कि ग़म-ए-इश्क़ नागवार हुआ - असग़र गोंडवी कविता - Darsaal

ये क्या कहा कि ग़म-ए-इश्क़ नागवार हुआ

ये क्या कहा कि ग़म-ए-इश्क़ नागवार हुआ

मुझे तू ज़ुरअ-ए-तल्ख़ और साज़गार हुआ

सरिश्क-ए-शौक़ का वो एक क़तरा-ए-नाचीज़

उछालना था कि इक बहर-ए-बे-कनार हुआ

अदा-ए-इश्क़ की तस्वीर खिंच गई पूरी

वुफ़ूर-ए-जोश से यूँ हुस्न बे-क़रार हुआ

बहुत लतीफ़ इशारे थे चश्म-ए-साक़ी के

न मैं हुआ कभी बे-ख़ुद न हुश्यार हुआ

लिए फिरी निगह-ए-शौक़ सारे आलम में

बहुत ही जल्वा-ए-हुस्न आज बे-क़रार हुआ

जहाँ भी मेरी निगाहों से हो चला मादूम

अरे बड़ा ग़ज़ब ऐ चश्म सेहर-कार हुआ

मिरी निगाहों ने झुक झुक के कर दिए सज्दे

जहाँ जहाँ से तक़ाज़ा-ए-हुस्न-ए-यार हुआ

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