असग़र गोंडवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का असग़र गोंडवी (page 1)
नाम | असग़र गोंडवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Asghar Gondvi |
जन्म की तारीख | 1884 |
मौत की तिथि | 1936 |
जन्म स्थान | Gonda |
ज़ुल्फ़ थी जो बिखर गई रुख़ था कि जो निखर गया
ज़ाहिद ने मिरा हासिल-ए-ईमाँ नहीं देखा
यूँ मुस्कुराए जान सी कलियों में पड़ गई
ये भी फ़रेब से हैं कुछ दर्द आशिक़ी के
ये आस्तान-ए-यार है सेहन-ए-हरम नहीं
यहाँ कोताही-ए-ज़ौक़-ए-अमल है ख़ुद गिरफ़्तारी
यहाँ कोताही-ए-ज़ौक़-ए-अमल है ख़ुद गिरफ़्तारी
वो शोरिशें निज़ाम-ए-जहाँ जिन के दम से है
वो नग़्मा बुलबुल-ए-रंगीं-नवा इक बार हो जाए
वहीं से इश्क़ ने भी शोरिशें उड़ाई हैं
उस जल्वा-गाह-ए-हुस्न में छाया है हर तरफ़
सुनता हूँ बड़े ग़ौर से अफ़्साना-ए-हस्ती
सौ बार तिरा दामन हाथों में मिरे आया
सौ बार तिरा दामन हाथों में मिरे आया
रूदाद-ए-चमन सुनता हूँ इस तरह क़फ़स में
रिंद जो ज़र्फ़ उठा लें वही साग़र बन जाए
क़हर है थोड़ी सी भी ग़फ़लत तरीक़-ए-इश्क़ में
पहली नज़र भी आप की उफ़ किस बला की थी
नियाज़-ए-इश्क़ को समझा है क्या ऐ वाइज़-ए-नादाँ
नहीं दैर ओ हरम से काम हम उल्फ़त के बंदे हैं
न कुछ फ़ना की ख़बर है न है बक़ा मालूम
मुझ से जो चाहिए वो दर्स-ए-बसीरत लीजे
मुझ को ख़बर रही न रुख़-ए-बे-नक़ाब की
मिरी वहशत पे बहस-आराइयाँ अच्छी नहीं ज़ाहिद
मैं क्या कहूँ कहाँ है मोहब्बत कहाँ नहीं
मैं कामयाब-ए-दीद भी महरूम-ए-दीद भी
माइल-ए-शेर-ओ-ग़ज़ल फिर है तबीअत 'असग़र'
लोग मरते भी हैं जीते भी हैं बेताब भी हैं
लज़्ज़त-ए-सज्दा-हा-ए-शौक़ न पूछ
क्या मस्तियाँ चमन में हैं जोश-ए-बहार से