ये हुस्न-ए-दिल-फ़रेब ये आलम शबाब का
गोया छलक रहा है पियाला शराब का
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रुमूज़-ए-मोहब्बत
इलाही कश्ती-ए-दिल बह रही है किस समुंदर में
जहाँ पे छाया सहाब-ए-मस्ती बरस रही है शराब-ए-मस्ती
तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए
आह क्या क्या आरज़ूएँ नज़्र-ए-हिरमाँ हो गईं
तेरे शबाब ने किया मुझ को जुनूँ से आश्ना
सारी दुनिया से बे-नियाज़ी है
ज़ुल्मत-ए-दश्त-ए-अदम में भी अगर जाऊँगा
मिरी हर साँस को सब नग़्मा-ए-महफ़िल समझते हैं
तुम्हारी फ़ुर्क़त में मेरी आँखों से ख़ूँ के आँसू टपक रहे हैं