तेरे शबाब ने किया मुझ को जुनूँ से आश्ना
मेरे जुनूँ ने भर दिए रंग तिरी शबाब में
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तुम्हारी फ़ुर्क़त में मेरी आँखों से ख़ूँ के आँसू टपक रहे हैं
तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए
रुमूज़-ए-मोहब्बत
जहाँ पे छाया सहाब-ए-मस्ती बरस रही है शराब-ए-मस्ती
ख़ुदा की देन है जिस को नसीब हो जाए
मिरी हर साँस को सब नग़्मा-ए-महफ़िल समझते हैं
जिस हुस्न की है चश्म-ए-तमन्ना को जुस्तुजू
ज़ुल्मत-ए-दश्त-ए-अदम में भी अगर जाऊँगा
सारी दुनिया से बे-नियाज़ी है
लुत्फ़ गुनाह में मिला और न मज़ा सवाब में
ये हुस्न-ए-दिल-फ़रेब ये आलम शबाब का