सारी दुनिया से बे-नियाज़ी है
वाह ऐ मस्त-ए-नाज़ क्या कहना
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ख़ुदा की देन है जिस को नसीब हो जाए
रुमूज़-ए-मोहब्बत
आह क्या क्या आरज़ूएँ नज़्र-ए-हिरमाँ हो गईं
तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए
सज्दे के दाग़ से न हुई आश्ना जबीं
जिस हुस्न की है चश्म-ए-तमन्ना को जुस्तुजू
तुम्हारी फ़ुर्क़त में मेरी आँखों से ख़ूँ के आँसू टपक रहे हैं
जहाँ पे छाया सहाब-ए-मस्ती बरस रही है शराब-ए-मस्ती
ये हुस्न-ए-दिल-फ़रेब ये आलम शबाब का
मिरी हर साँस को सब नग़्मा-ए-महफ़िल समझते हैं