ख़ुदा की देन है जिस को नसीब हो जाए
हर एक दिल को ग़म-ए-जावेदाँ नहीं मिलता
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जहाँ पे छाया सहाब-ए-मस्ती बरस रही है शराब-ए-मस्ती
इलाही कश्ती-ए-दिल बह रही है किस समुंदर में
ये हुस्न-ए-दिल-फ़रेब ये आलम शबाब का
रुमूज़-ए-मोहब्बत
तुम्हारी फ़ुर्क़त में मेरी आँखों से ख़ूँ के आँसू टपक रहे हैं
तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए
ज़ुल्मत-ए-दश्त-ए-अदम में भी अगर जाऊँगा
जिस हुस्न की है चश्म-ए-तमन्ना को जुस्तुजू
लुत्फ़ गुनाह में मिला और न मज़ा सवाब में
मिरी हर साँस को सब नग़्मा-ए-महफ़िल समझते हैं
सज्दे के दाग़ से न हुई आश्ना जबीं