तुम चाहो तो दो लफ़्ज़ों में तय होते हैं झगड़े
कुछ शिकवे हैं बेजा मिरे कुछ उज़्र तुम्हारे
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बे-वज्ह नहीं हुस्न की तनवीर में ताबिश
इश्क़ में शिकवा कुफ़्र है और हर इल्तिजा हराम
वो जो नहीं हैं बज़्म में बज़्म की शान भी नहीं
वो उन का हिजाब और नज़ाकत के नज़ारे