कुछ देर फ़िक्र आलम-ए-बाला की छोड़ दो
इस अंजुमन का राज़ इसी अंजुमन में है
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करम पर भी होता है धोका सितम का
आह से जब दिल में डूबे तीर उभारे जाएँगे
जो सज़ा दीजे है बजा मुझ को
आह किस से कहें कि हम क्या थे
आप का ख़त नहीं मिला मुझ को
भूलने वाले को शायद याद वादा आ गया
इधर से आज वो गुज़रे तो मुँह फेरे हुए गुज़रे
आप बिक जाए कोई ऐसा ख़रीदार न था
दिल इश्क़ की मय से छलक रहा है
निगह-ए-शौक़ को यूँ आइना-सामानी दे
हाए रे प्यारी प्यारी आँख
ज़िंदगी और ज़िंदगी की यादगार