इश्क़ से लोग मना करते हैं
जैसे कुछ इख़्तियार है अपना
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क़ासिद पयाम उन का न कुछ देर अभी सुना
आज कुछ मेहरबान है सय्याद
दिल इश्क़ की मय से छलक रहा है
किस तरह खिलते हैं नग़्मों के चमन समझा था मैं
हाए रे प्यारी प्यारी आँख
भूले अफ़्साने वफ़ा के याद दिल्वाते हुए
निगह-ए-शौक़ को यूँ आइना-सामानी दे
क्या क्या दुआएँ माँगते हैं सब मगर 'असर'
इक बात भला पूछें किस तरह मनाओगे
आह से जब दिल में डूबे तीर उभारे जाएँगे
न शरह-ए-शौक़ न तस्कीन जान-ए-ज़ार में है
बहार है तिरे आरिज़ से लौ लगाए हुए