आज कुछ मेहरबान है सय्याद
क्या नशेमन भी हो गया बर्बाद
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आह से जब दिल में डूबे तीर उभारे जाएँगे
भूले अफ़्साने वफ़ा के याद दिल्वाते हुए
चुपके से नाम ले के तुम्हारा कभी कभी
दिल गया बे-क़रारियाँ न गईं
मुझ को हर फूल सुनाता था फ़साना तेरा
न शरह-ए-शौक़ न तस्कीन जान-ए-ज़ार में है
क़ासिद पयाम उन का न कुछ देर अभी सुना
भूलने वाले को शायद याद वादा आ गया
फिरते हुए किसी की नज़र देखते रहे
झपकी ज़रा जो आँख जवानी गुज़र गई
काहे को ऐसे ढीट थे पहले झूटी क़सम जो खाते तुम
सना तेरी नहीं मुमकिन ज़बाँ से