मुझ को हर फूल सुनाता था फ़साना तेरा
मुझ को हर फूल सुनाता था फ़साना तेरा
तेरे दामन की क़सम अपने गरेबाँ की क़सम
गूँजता रहता था इक नग़्मा मिरे कानों में
तपिश-आहंगी-ए-मिज़राब-ए-रग-ए-जाँ की क़सम
इल्तिफ़ात-ए-निगह-ए-नाज़ का सौदा था कभी
ख़त्म वो दौर हुआ गर्दिश-ए-दौराँ की क़सम
अब न वो दिल है न वो वलवला-ए-अर्ज़-ए-नियाज़
हाथ से छूटे हुए गोशा-ए-दामाँ की क़सम
मुझ को बरबाद ही रहने दे तलाफ़ी से गुज़र
इश्क़ एहसाँ है गिराँ-बारी-ए-एहसाँ की क़सम
अदब-आमोज़-ए-मोहब्बत है मोहब्बत मेरी
वर्ना खाता तिरे तोड़े हुए पैमाँ की क़सम
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