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अश्क-ए-गुल-रंग निसार-ए-ग़म-ए-जानाना करें - असर लखनवी कविता - Darsaal

अश्क-ए-गुल-रंग निसार-ए-ग़म-ए-जानाना करें

अश्क-ए-गुल-रंग निसार-ए-ग़म-ए-जानाना करें

आज तेरी ही ख़ुशी ऐ दिल-ए-दीवाना करें

दर्द-मंदों से ये कह दो कि बा-आईन-ए-नियाज़

दिल को ज़ौक़-ए-करम यार से बेगाना करें

ताकि आसूदा-ए-हिरमाँ दिल-ए-ग़म-कोश न हो

दो घड़ी ज़िक्र-ए-मय-ओ-साक़ी-ओ-पैमाना करें

बू-ए-ख़ुश तेरी नहीं जिन के मशाम-ए-जाँ में

रंग-ओ-निकहत का गुलों को वही पैमाना करें

का'बा-ओ-दैर-ओ-कलीसा की फ़ज़ाओं से अलग

आओ ता'मीर मोहब्बत का जिलौ-ख़ाना करें

इतनी फ़ुर्सत ही कहाँ है कि तिरे सोख़्ता-जाँ

जलने मरने में हम-आहंगी-ए-परवाना करें

अपनी हस्ती की फ़क़त इतनी है रूदाद 'असर'

जैसे मंसूब हक़ीक़त से इक अफ़्साना करें

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