जाने क्यूँ लोग ग़म से डरते हैं

जाने क्यूँ लोग ग़म से डरते हैं

हम तो आलाम में निखरते हैं

जो ख़ुशी के सराब में गुम हैं

वो ख़ुशी से ही अपनी मरते हैं

ग़म भी रखते हैं साथ ख़ुशियों के

ज़िंदगी में जो रंग भरते हैं

टूट जाते हैं सब ग़मों के हिसार

मोती ख़ुशियों के जब बिखरते हैं

लाख ख़ुशियाँ उन्हें मुबारक हों

हम ग़मों से ही दिल को भरते हैं

डूब जाते हैं जो किनारे पर

वो कहाँ डूब कर उभरते हैं

हालत-ए-दिल बताएँ हम उन को

कैसे दिन रात अब गुज़रते हैं

खुल ही जाते हैं उन पे ऐब-ओ-हुनर

आईने से जो बात करते हैं

आइना देखता है हैरत से

वो जिस अंदाज़ से सँवरते हैं

क्या भरोसा है ज़िंदगी का 'असर'

रोज़ जीते हैं रोज़ मरते हैं

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