सीनों में अगर होती कुछ प्यार की गुंजाइश

सीनों में अगर होती कुछ प्यार की गुंजाइश

हाथों में निकलती क्यूँ तलवार की गुंजाइश

पिछड़े हुए गाँव का शायद है वो बाशिंदा

जो शहर में ढूँडे है ईसार की गुंजाइश

नफ़रत की तअ'स्सुब की यूँ रक्खी गईं ईंटें

पैदा हुई ज़ेहनों में दीवार की गुंजाइश

पाकीज़गी रूहों की नीलाम हुई जब से

जिस्मों में निकल आई बाज़ार की गुंजाइश

इस तरह खुले दिल से इक़रार नहीं करते

रख लीजिए थोड़ी सी इंकार की गुंजाइश

गर अज़्म मुसम्मम हो और जेहद-ए-मुसलसल भी

सहरा में निकल आए गुलज़ार की गुंजाइश

समझें कि न समझें वो हम ने तो 'असद' रख दी

अशआर के होंटों पे इज़हार की गुंजाइश

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