शराब बंद हो साक़ी के बस की बात नहीं
तमाम शहर है दो चार दस की बात नहीं
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असरार अगर समझे दुनिया की हर इक शय के
इन अक़्ल के बंदों में आशुफ़्ता-सरी क्यूँ है
तमाशा है कि सब आज़ाद क़ौमें
रहें न रिंद ये ज़ाहिद के बस की बात नहीं