रहें न रिंद ये ज़ाहिद के बस की बात नहीं
तमाम शहर है दो-चार दस की बात नहीं
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Wasi Shah
Parveen Shakir
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1431) Peoples Rate This
असरार अगर समझे दुनिया की हर इक शय के
इन अक़्ल के बंदों में आशुफ़्ता-सरी क्यूँ है
तमाशा है कि सब आज़ाद क़ौमें
शराब बंद हो साक़ी के बस की बात नहीं