असरार अगर समझे दुनिया की हर इक शय के
ख़ुद अपनी हक़ीक़त से ये बे-ख़बरी क्यूँ है
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तमाशा है कि सब आज़ाद क़ौमें
इन अक़्ल के बंदों में आशुफ़्ता-सरी क्यूँ है
शराब बंद हो साक़ी के बस की बात नहीं
रहें न रिंद ये ज़ाहिद के बस की बात नहीं