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ख़याल यार मुझे जब लहू रुलाने लगा - असद जाफ़री कविता - Darsaal

ख़याल यार मुझे जब लहू रुलाने लगा

ख़याल यार मुझे जब लहू रुलाने लगा

तो ज़ख़्म ज़ख़्म मिरे दिल का मुस्कुराने लगा

मुझे ख़ुद अपनी वफ़ा पर भी ए'तिमाद नहीं

मैं क्यूँ तुम्हारी मोहब्बत को आज़माने लगा

किया है याद मुझे मेरे बा'द दुनिया ने

हुआ जो ग़र्क़ तो साहिल क़रीब आने लगा

न छीन मुझ से सुरूर-ए-शब-ए-फ़िराक़ न छीन

क़रार-ए-दिल को न दस्तक के ताज़ियाने लगा

मिसाल अपनी तो है इस दरख़्त की कि जिसे

लगा जो संग तो बदले में फल गिराने लगा

हर एक सम्त रिया की तमाज़तें हैं 'असद'

जो हो सके तो मोहब्बत के शामियाने लगा

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