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इश्क़ को जब हुस्न से नज़रें मिलाना आ गया - असद भोपाली कविता - Darsaal

इश्क़ को जब हुस्न से नज़रें मिलाना आ गया

इश्क़ को जब हुस्न से नज़रें मिलाना आ गया

ख़ुद-ब-ख़ुद घबरा के क़दमों में ज़माना आ गया

जब ख़याल-ए-यार दिल में वालेहाना आ गया

लौट कर गुज़रा हुआ काफ़िर ज़माना आ गया

ख़ुश्क आँखें फीकी फीकी सी हँसी नज़रों में यास

कोई देखे अब मुझे आँसू बहाना आ गया

ग़ुंचा ओ गुल माह ओ अंजुम सब के सब बेकार थे

आप क्या आए कि फिर मौसम सुहाना आ गया

मैं भी देखूँ अब तिरा ज़ौक़-ए-जुनून-ए-बंदगी

ले जबीन-ए-शौक़ उन का आस्ताना आ गया

हुस्न-ए-काफ़िर हो गया आमादा-ए-तर्क-ए-जफ़ा

फिर 'असद' मेरी तबाही का ज़माना आ गया

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