पुराने घर की शिकस्ता छतों से उकता कर
नए मकान का नक़्शा बनाता रहता हूँ
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रास्ता कोई सफ़र कोई मसाफ़त कोई
ये धूप छाँव के असरार क्या बताते हैं
जिसे न मेरी उदासी का कुछ ख़याल आया
बिछड़ के तुझ से किसी दूसरे पे मरना है
हवा हवस के इलाक़े दिखा रही है मुझे
ये ताएरों की क़तारें किधर को जाती हैं
शाख़ से फूल से क्या उस का पता पूछती है
परिंद क्यूँ मिरी शाख़ों से ख़ौफ़ खाते हैं
हरीफ़ कोई नहीं दूसरा बड़ा मेरा
हवा के पास बस इक ताज़ियाना होता है
जो अक्स-ए-यार तह-ए-आब देख सकते हैं