सच बोल के बचने की रिवायत नहीं कोई

सच बोल के बचने की रिवायत नहीं कोई

और मुझ को शहादत की ज़रूरत नहीं कोई

मैं रिज़्क़ की आवाज़ पे लब्बैक कहूँगा

हाँ मुझ को ज़मीनों से मोहब्बत नहीं कोई

मेरे भी कई ख़्वाब थे मेरे भी कई अज़्म

हालात से इंकार की सूरत नहीं कोई

मैं जिस के लिए सारे ज़माने से ख़फ़ा था

अब यूँ है कि उस नाम से निस्बत नहीं कोई

लहजा है मिरा तल्ख़ मिरे वार हैं भरपूर

लेकिन मेरे सीने में कुदूरत नहीं कोई

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