जो अक्स-ए-यार तह-ए-आब देख सकते हैं
जो अक्स-ए-यार तह-ए-आब देख सकते हैं
अजीब लोग हैं क्या ख़्वाब देख सकते हैं
समुंदरों के सफ़र सब की क़िस्मतों में कहाँ
सो हम किनारे से गिर्दाब देख सकते हैं
गुज़रने वाले जहाज़ों से रस्म ओ राह नहीं
बस उन के अक्स सर-ए-आब देख सकते हैं
हवा के अपने इलाक़े हवस के अपने मक़ाम
ये कब किसी को ज़फ़र-याब देख सकते हैं
ख़फ़ा हैं आशिक़ ओ माशूक़ से मगर कुछ लोग
ग़ज़ल में इश्क़ के आदाब देख सकते हैं
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