फिर चाहे तो न आना ओ आन बान वाले
झूटा ही वअ'दा कर ले सच्ची ज़बान वाले
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ख़िज़ाँ का भेस बना कर बहार ने मारा
नाले हैं दिलसिताँ तो फिर आहें हैं बर्छियाँ तो फिर
है मोहब्बत ऐसी बंधी गिरह जो न एक हाथ से खुल सके
हद से टकराती है जो शय वो पलटती है ज़रूर
किस ने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी
तू कहता है ख़ालिक़-ए-शर-ओ-ख़ैर नहीं
नाम मंसूर का क़िस्मत ने उछाला वर्ना
किस काम की ऐसी सच्चाई जो तोड़ दे उम्मीदें दिल की
धारे से कभी कश्ती न हटी और सीधी घाट पर आ पहुँची
जवाब देने के बदले वो शक्ल देखते हैं
वो क़िस्सा-ए-दर्द-आगीं चुप कर दिया था जिस ने
कुछ कहते कहते इशारों में शर्मा के किसी का रह जाना