नाले हैं दिलसिताँ तो फिर आहें हैं बर्छियाँ तो फिर
हम तो ख़मोश बैठे थे आप ने क्यूँ सता दिया
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क़ुर्बत बढ़ा बढ़ा कर बे-ख़ुद बना रहे हैं
दिल की ज़िद इस लिए रख ली थी कि आ जाए क़रार
जो बुत है यहाँ अपनी जा एक ही है
हैं देस-बिदेस एक गुज़र और बसर में
कम जो ठहरे जफ़ा से मेरी वफ़ा
क्यूँ किसी रह-रौ से पूछूँ अपनी मंज़िल का पता
गँवा के दिल सा गुहर दर्द-ए-सर ख़रीद लिया
ऐ मिरे ज़ख़्म-ए-दिल-नवाज़ ग़म को ख़ुशी बनाए जा
मासूम नज़र का भोला-पन ललचा के लुभाना क्या जाने
वो पलट के जल्द न आएँगे ये अयाँ है तर्ज़-ए-ख़िराम से
तेरे तो ढंग हैं यही अपना बना के छोड़ दे