कुछ तो मिल जाए लब-ए-शीरीं से
ज़हर खाने की इजाज़त ही सही
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मिसाल-ए-शम्अ अपनी आग में क्या आप जल जाऊँ
ख़मोश जलने का दिल के कोई गवाह नहीं
आने में झिझक मिलने में हया तुम और कहीं हम और कहीं
ख़मोशी मेरी मअनी-ख़ेज़ थी ऐ आरज़ू कितनी
जितना था सरगर्म-ए-कार उतना ही दिल नाकाम था
जो दिल रखते हैं सीने में वो काफ़िर हो नहीं सकते
वो हाथ मार पलट कर जो कर दे काम तमाम
ख़ुशबू कहीं छुपी है मोहब्बत के फूल की
फेर जो पड़ना था क़िस्मत में वो हस्ब-ए-मामूल पड़ा
होश-ओ-बे-होशी की मंज़िल एक है रस्ते जुदा
निगाहें इस क़दर क़ातिल कि उफ़ उफ़
ऐ मिरे ज़ख़्म-ए-दिल-नवाज़ ग़म को ख़ुशी बनाए जा